पीलिया (Jaundice) क्या है?
दोस्तो आज हम पीलिया (Piliya) रोग के बारे मे चर्चा करने जा रहें। पीलिया को English में Jaundice (जॉन्डिस) कहते हैं।
सामान्यतः हमारे शरीर में 1 प्रतिशत मात्रा में पित्त रस पाया जाता है लेकिन जब पित्त रस की मात्रा 2.5 प्रतिशत से अधिक
हो जाती है तब पीलिया के लक्षण दिखाई देने लगते है।
पीलिया अलग से कोई विषेश रोग नहीं है बल्कि कहीं रोगों में पाया जाने वाला लक्षण है यह लक्षण नवजात शिशुओं से
लेकर 80 साल तक के बूढ़ों में भी हो सकता है।
भोजन का पूर्ण रूप से पाचन नहीं होने पर पित्त रस की मात्रा बढ़ जाती है यह पीलिया का ही कारण है।
इसके मुख्य लक्षणों में आखों में स्थित सफेद हिस्सा व सम्पूर्ण शरीर का रंग पीला हो जाता है।
पीलिया में कहीं बार कुछ अन्य लक्षण भी देखे जा सकते है जैसे पेट में दर्द, भूख ना लगना, वजन का घटना आदि।
अगर इसका सहीं समय पर ईलाज ना करवाया जाए तो यह मस्तिष्क पर हावी होकर अन्य बीमारीयों का कारण बन जाता है।
काला पीलिया – Kala Piliya in Hindi
काला पीलिया एक आम यकृत विकार है, जो की कई असामान्य चिकित्सा कारणों की वजह से हो सकते है।
इसके लक्षण व्यक्ति में सिर दर्द , बुखार , उल्टी , भूख कम लगना , त्वचा में खुजली और थकान आदि है।
काले पीलिया को खत्म करने के लिए घरेलू उपायों से आसानी से ठीक किया जा सकता हैं।
जैसे – मूली व पत्तो के रस मे इतनी ताकत होती है यह खुन व लीवर से अत्यधिक बिलिरूबीन को निकाल सकते है।
टमाटर के रस में विटामिन ’सी’ होता है जो काला पीलिया में बेहद लाभदायक होता है।
नवजात शिशुओं में पीलिया – Jaundice in Newborns in Hindi
नवजात शिशुओं को पीलिया होने का खतरा अधिक होता है। जब शिशु का जन्म होता है तो शिशु के शरीर में लाल रक्त
कोशिकाओं (Rbc) की अधिकता होती है।
जब अतिरिक्त (Rbc) सेल्स टूटने लगती है तो शिशु को पीलिया होने की संभावना होती है। शिशु में पीलिया की शुरूआत
सिर से होती है।फिर चेहरा पीला पड़ता है इसके बाद सीने और पेट में फेलता है और अंत में पैरो में फेल जाता है।
शिशु अगर पीलिया से 14 दिन से अधिक ग्रस्त रहता है तो इसके परिणाम घातक हो सकते है।
पीलिया से ग्रस्त शिशु को डॉक्टर दवॉइयों से अधिक कुछ देर धूप ’ सन लाईट ’ में लेकर जाने की सलाह देते है जो शिशु
के लिए सबसे उपयोगी है।
पीलिया के प्रकार – Types of Jaundice in Hindi
1. हेमोलिटीक पीलिया ( Hemolytic Jaundice ):-
अगर लाल रक्त कोशिकाएं समय से पहले टूट जाती है तो इतनी ज्यादा मात्रा मे बिलीरूबिन ( पित ) बनता है जिस लिवर साफ नही कर पाता
इस कारण आँखें और शरीर पीला दिखाई देते है। यह आनुवांंशिक या कुछ दवाइयों के दुष्प्रभाव के कारण भी होता सकता है।
2. हेपैटोसेलुलर पीलिया (Hepatocellular Jaundice) :-
यह लीवर मे हुई उत्पन समस्या के कारण होता है नवजात शिशुओ में लिवर का पूर्ण रूप से विकास नहीं हो
पाता जिस कारण बिलीरूबिन की प्रक्रिया पूरी नहीं होती यह स्थाई पीलिया का कारण भी हो सकता है।
जबकि बडों मे यह शराब के सेवन से लिवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुचने से होता है।
3. पोस्ट-हिपेटिक पीलिया या ऑब्सट्रक्टिव पीलिया (Post-Hepatic or Obstructive Jaundice) :-
पित नलिका में रूकावट के कारण बिलीरूबिन बढ़ जाता हैं जिससे मूत्र में फैलने से उसका रंग पीला हो जाता है।
पीलिया के लक्षण- Jaundice Symptoms in Hindi
पीलिया का सबसे बड़ा लक्षण है त्वचा और ऑंखों कें सफेद हिस्सों का पीला हो जाना है।
इसके अलावा पीलिया के लक्षण में निम्न शामिल है। जैसे
- बुखार का आना
- कमजोरी होना
- थकान होना
- भूख न लगना
- वजन कम होना
- पेट दर्द होना
- सिर दर्द होना
- शरीर में खुजली होना
- पीले रंग का मूत्र आना आदि पीलिया के लक्षण है।
पीलिया किन लोगों को हो सकता है ?
यह रोग किसी भी अवस्था के व्यक्ति को हो सकता है। गर्भवती महीला पर इस रोग के लक्षण बहुत ही उग्र होते है और
उन्है यह लम्बे समय तक कष्ट देता है। इसी प्रकार नवजात शिशुओं में भी यह बहुत उग्र होता है तथा जानलेवा भी हो सकता है। जैसे
युवाओं में पीलिया कें कारण – Causes and Risk Factors of Jaundice in Hindi
अगर रक्त में बिलीरूबिन ’ पित ’ की मात्रा 2.5 से ज्यादा हो जाती है तो लिवर की गंदगी साफ करने की प्रक्रिया रूक जाती है
और इस वजह से पीलिया होता है। पीलिया लाल रक्त कोशिकाओं का जल्दी टूटने से बिलीरूबिन की मात्रा में वृद्धि के
कारण होता है
1 दिनों तक मलेरिया से ग्रस्त रहना।
2 थैलासीमिया,सिकल सेल
3 एनीमिया,गिल्बर्ट सिड्रोम
4 और अन्य कई आनुवांशिक कारण होते है।
5 लीवर में संक्रमण होना
6 शरीर में एसिडिटी बढ़ जाना
7 ज्यादा शराब पिना
8 अधिक नमक व तीखे पदार्थो का सेवन करना
9 लीवर में घाव होना
10 पित्ताशय में पथरी होना
11 हेपेटाइटिस का होना
12 पैंक्रियाटिक का कैंसर होना
13 बाइल डक्ट का बंद होना
14 एल्कोहल से संबधी लिवर की बीमारी होना
15 दवाओं का अधिक सेवन करना
और अन्य कहीं अनुवांशिकता लक्षण भी पीलिया के कारण हो सकते है।
नवजात शिशुओं में पीलिया (Jaundice) होने के कारण
1.समय से पहले बच्चे के जन्म होना :-
वेसे तो सामान्यतः 38 सप्ताह में बच्चा जन्म लेने की अवस्था में आ जाता है कुछ स्थिती में समय से पहले बच्चे का जन्म
होने से बिलीरूबिन की प्रकिया पूर्ण नहीं हो जिस कारण वह कम खाता और कम मल त्याग ता है।
जिससे बिलीरूबिन की मात्रा बढ़ती रहती है और पीलिया हो जाता है।
2.जन्म के समय चोट लगना :-
प्रसव के समय चौट लगने से लाल रूधिर कणिकाओं ( Rbc ) के टूटने से बिलीरूबिन बढ़ने पर पीलिया हो सकता है।
3.अलग रक्त वर्ण का होना :-
यदि मां और बच्चे के रक्त वर्ण अलग.अलग होते है तो बच्चे को प्लेसेंटा के माध्यम से एंटीबॉडी प्राप्त होती है
जिससे रक्त कोशिकाएं तेजी से टूट जाती है जो पीलिया का कारण हो सकता है।
पीलिया के कारण होने वाली अन्य बीमारियां
पीलिया एक जानलेवा बीमारी है लेकिन कभी-कभी रोग का सही समय पर उपचार ना किया गया, तो यह गंभीर रूप ले
सकता है। पीलिया के कारण और दूसरी बीमारिया भी हो सकती है।
फैटी लिवर – (Fatty Liver)
जब लिवर में वसा की मात्रा अधिक हो जाती है तो उसे फैटी लिवर कहते है। वसायुक्त भोजन करने, अनियमित दिनचर्या
जैसे तनाव, मोटापा, शराब का सेवन करना या किसी बीमारी के कारण लम्बें समय तक दवाइयां लेने से फैटी लिवर की
समस्या हो सकती है।
लक्षण:-
भोजन का सही रूप से पाचंन नही होना, पेट में दर्द, थकान, कमजोरी, भूख न लगना पेट का फूलना। कारणों का पता
लगाकर डॉक्टर दिनचर्या में बदलाव करने की सलाह देते है। स्थिति गंभीर होने पर लिवर सिरोसिस भी हो सकता हैं।
ट्रांसप्लांट ही इसका अंतिम इलाज होता हैं।
सिरोसिस रोग – (Cirrhosis Disease)
शराब का सेवन करने व खराब जीवन शैली के चलते कई बार लिवर में रेशे बनने लगते हैं, जो कोशिकाओं को ब्लॉक कर देते हैं।
इस स्थिति में लिवर अपने वास्तविक आकार में ना रहकर सिकुड़ने लगता है, और लचीलापन खोकर कठोर हो जाता है।
लिवर ट्रांसप्लांट से इसका इलाज किया जाता है।पीलिया के कारण इस बीमारी के होने का खतरा ज्यादा रहता है
इसलिए पीलिया के लक्षणों को अनदेखा ना करें बल्कि जल्द इलाज कराएं।
लक्षणः-
पेट में दर्द, पैरों में सूजन, बेहोशी, मल त्यागने के दौरान रक्त आना, शरीर पर अधिक सूजन और पेट में पानी भर जाने
जैसे लक्षण दिखाई देते है।
लिवर फेल्योर – (Liver Failure)
लिवर की कोई भी बीमारी यदि सही तरीके से ठिक न होकर लम्बें समय तक रहे तो यह अंग काम करना बन्द कर देता है
इसे लिवर फेल्योर कहते है। यह दो प्रकार के होते है।
एक्यूट लिवर फेल्योर – (Acute Liver Failure)
यह मलेरिया, टायफॉइड, हेपेटाइटिस-ए, बी, सी, डी, व ई जैसे अन्य रोग से अचानक हुए संक्रमण से लिवर की कोशिकाएं
नष्ट होने लगती है। इसका एक कारण लम्बे समय से शराब पीना भी है इसमें बचने की संभावना 10 फीसदी ही रह जाती है।
क्रोनिक लिवर फेल्योर – (Chronic Liver Failure)
यह भी लंबे समय से इस अंग से जुड़ी बीमारी का कारण है। इन दोनों अवस्थाओं में लिवर ट्रांसप्लांट से
ही स्थायी इलाज होता हैं।
पीलिया से बचाव – Prevention of Jaundice in Hindi
लीवर शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग होता है क्योंकी यहीं अंग होता है जो पाचक रस बनाता है। जिससे हमारा भोजन पचता है
इसके साथ – साथ लीवर खून का थक्का बनाने मरीज द्वारा ली गई मेटाबालिज्म करना और खराब पदार्थो को शरीर से
बाहर निकालने में मदद करता है।
हालाकि निम्न आदतों से हम लीवर को सुरक्षित रख सकते है।आयरन की खुराक लेने या अधिक आयरन युक्त खाघ पदार्थ
खाने से रक्त में आयरन की मात्रा की वृद्धि होती है जिससे एनीमिया से होने वाला पीलिया का इलाज किया जा सकता है।
पीलिया का इलाज उसके कारण पर निर्भर करता है। जैसे ही पीलिया का परीक्षण हो जाता है वैसे ही उसके इलाज
स्टेरॉयड दवाओं से किया जा सकता है।
1.संतुलित भोजन करना।
2.नियमित एक्सरसाइज करना
3.साफ व स्वच्छ पानी पीना
4.शराब पीना बन्द कर देना
5. संक्रमण के दौरान वसायुक्त और तेल युक्त खाद्य पदार्थो से बचें
6.कार्बोहाइड्रेट, आम और पपीता जैसे फलो का सेवन करे इन्हें पचाने में आसानी होती है और लिवर को भी कोई नुकसान
नहीं पहुचता है।
पीलिया की जांच – Diagnosis of Jaundice in Hindi
1.बिलीरूबिन टस्टे
2.कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट
3.एमआर आई स्कैन
4.सीटी स्कैन ’’कैट स्कैन ’’
5.एन्डोस्कोपिक रेट्रोग्रैड कौलैंजियोपैनक्रीटोग्राफी ’’ ईआरसीपी ’’ आदि।
Piliya (पीलिया) का इलाज – Jaundice Treatment in Hindi
पीलिया का इलाज उसके कारणों पर निर्भर करता है। जैसे पीलिया का परीक्षण हो जाता है।
वैसे ही उसके इलाज की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।पीलिया का इलाज उसके कारणों पर निर्भर करता है।
जैसे पीलिया का परीक्षण हो जाता है। वैसे ही उसके इलाज की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।
पीलिया का इलाज उसके कारणों पर निर्भर करता है। जैसे पीलिया का परीक्षण हो जाता है।
वैसे ही उसके इलाज की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।पीलिया का इलाज उसके कारणों पर निर्भर करता है।
जैसे पीलिया का परीक्षण हो जाता है। वैसे ही उसके इलाज कीप्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।
पीलिया का इलाज उसके कारणों पर निर्भर करता है। जैसे पीलिया का परीक्षण हो जाता है। वैसे ही उसके इलाज की
प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।
Piliya के घरेलू उपचार – Home Remedies for Jaundice in Hindi
- पीलिया होने पर कभी भी झाड़ -फूक के चक्कर में ना आये।
2. गन्ने का सेवन करें।
3. मौसमी का जूस पिऐ।
4. छाछ,दही,मठठे का सेवन करें।
5. तुलसी व गीलोई का सेवन करें।
6. दूध व ऑवला का सेवन करें।
7. टमाटर का सेवन करें।
8. कच्चे पपीते की बीना मसाले वाली सब्जी का सेवन करें।
9. मूली व उसके पत्तों के रस को मिश्री में मीलाकर सेवन करें।
10. पीलिया के रोगी कुछ समय के लिए सुरज की रोशनी में जरूर बेठें।
11. सुरक्षित यौवन संबध भी महत्वपूर्ण है। ऐसा करने से आप पीलिया को जल्दी ही खत्म कर सकते हैं।
बिलीरूबिन का उपचार – Bilirubin
बिलीरूबिन रक्त में पाया जाने वाला एक पदार्थ है जो मानव शरीर के अन्दर लाल रक्त कोशिकाओं ( Rbc ) के टूटने के
कारण होता है। बिलीरूबिन की अधिक मात्रा से मानव शरीर में अनेक बीमारीयों का कारण बन जाता है जिनमें मुख्य
बीमारी पीलिया है।
शिशुओं में बिलीरूबिन के प्राथमिक उपचार के लिए फोटोथेरेपी का उपयोग किया जाता है। इसके बाद ट्रांसफ्यूज और
इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन की मदद भी ली जा सकती है। युवाओं में बिलीरूबिन होने के कारणों का पता लगाकर इलाज
किया जा सकता है।जैसे शराब ना पीने की सलाह देना लिवर को हानि पहुचाने वाले पदार्थो के सेवन से बचना आदि।
पीलिया से होने वाली जटिलताएं – Jaundice Complications in Hindi
पीलिया होने के वेसे तो बहुत से कारण हो सकते है परन्तु पीलिया रोग में होने वाली जटिलताओं का होना उन कारणों पर
निर्भर करता है जिनसे पीलिया हुआ हैं जैसे।
1. लिवर का विफल होना- पीलिया होने पर व्यक्ति अधिक कमजोर हो जाता है जिसके चलते उसकी पांचन शक्ति कम हो
जाती है और दवाइयों के अधिक सेवन से लिवर फेल भी हो सकता है।
2. कैंसर का खतरा होना- पीलिया से लिवर में इनफेक्शन व घाव होने पर कैंसर का खतरा बना रहता है।
3. खुन का बहना – सही तरीके से इलाज ना होने पर पीलिया घातक रूप ले लेता है। और बीमार व्यक्ति के मल द्वार से
रक्त बहने लगता है।
4. एनीमिया- यह खून की कमी से होने वाला रोग है।यह सब रोग पीलिया से अधिक प्रभावित होने के कारण हो सकते है
पीलिया का होम्योपैथिक उपचार -Homeopathic Treatment of Jaundice
होम्योपैथिक दवाइयां में भी प्राकृतिक सामग्री का इस्तेमाल किया जाता हैं।
परन्तु कोई भी होम्योपैथी दवा लेने से पहले योग्य होम्योपैथी डॉक्टर से सलाह अवश्य लेनी चाहिए समस्या के अनुसार
दवाएं दे सके।
होम्योपैथी में ऐसी बहुत सी दवांए उपलब्ध है जो पीलिया के अंदरूनी कारणों को ठिक कर सकती हैं,
और साथ ही इसकी जटिलताओं से भी बचाव करती हैं। वह निम्न है।
1.ऐकोनिटम नेपेलस- इसका सामान्य नाम ’’मौक्सहुड’’ है। इस दवा का उपयोग पीलिया में लगातार चिंता व डर बनें
रहने, शारीरिक व मानसिक बैचेनी, अचानक बुखार व प्यास लगना आदि समस्याओं में उपयोग की जाती हैैै।
2. आर्सेनिकम एल्बम -इसका सामान्य नाम ’’आर्सेनिकम ट्राइऑक्साइड’’ है। इस का उपयोग अधिक थकान महसूस करना,
हमेशा मौत का डर, अकेले रह जाने से डरना, खाने में गन्ध आने जैसी समस्या में उपयोग किया जाता है।
3. बेलाडोना -सामान्य नाम ’’डेडली नाइटशेड’’
4. ब्रायोनिया एल्बा-सामान्य नाम ’’वाइल्ड हॉप्स’’ इसका उपयोग
पेट में तेज दर्द होने, चिड़चिड़ापन होना, त्वचा पीली होना लिवर में सूजन के साथ जलन होना आदि
पीलिया के साथ इन सभी समस्याओं में भी इन दवाइयों का उपयोग किया जाता है।
Our Other Blogs